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پیامبر اکرم صلی الله علیه وآله می خوانیم: «دنی فتدلّی فکان قاب قوسین او ادنی»(1)
چنان به خدا نزدیک شد که به قدر دو کمان یا نزدیک تر شد.
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واقعه«1» إذَا وَقَعَتِ الْوَاقِعَهُ
آن گاه که آن واقعه (عظیم قیامت) روی داد.
سؤال: چرا با آن که قیامت اتفاق نیفتاده است، این جمله با فعل ماضی آمده است؟
پاسخ: هر کجا وقوع امر و حادثه ای قطعی باشد، برای بیان آن می توان از فعل ماضی استفاده کرد. لذا بسیاری از آیات درباره قیامت، با فعل گذشته بیان شده است. «اذا وقعت الواقعه» چنانکه با دیدن سیل بزرگی که به سوی شهر حرکت می کند، می توان گفت: سیل شهر را برد، با اینکه هنوز سیل به شهر نرسیده است.
-186
حدید «23» لِّکَیْلا تَأْسَوْاْ عَلَی مَا فَاتَکُمْ وَ لاتَفْرَحُواْ بِمَآ آتَاکُمْ وَ اللَّهُ لا یُحِبُّ کُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ
تا بر آنچه از دست دادید تأسف نخورید و به آنچه به شما داده شد شادمانی نکنید و خداوند هیچ متکبر فخرفروشی را دوست ندارد.
سؤال: با حوادث تلخ و شیرینی که پیش میآید ، چگونه باید برخورد کرد؟
پاسخ: تمام حوادث تلخ و شیرین، همچون پلّه هایی از سنگ های سیاه و سفید، برای بالا رفتن است و باید بدون توجّه به رنگِ پلّه ها به سرعت از آن گذشت. در سر یک سفره ممکن است هم ترشی و فلفل قرار دهند و هم شیرینی و مربّا؛ کودکان از شیرینی و حلوای سفره لذّت می برند و فلفل و ترشی را بی مورد می دانند، امّا بزرگ ترها هر دو را در سفره لازم می دانند.
1- . نجم،9.