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تباه شدن اعمال انسان را نیز از این رو حبط می گویند که آنان توسط گناهان، مسموم و توخالی و در معرض نابودی قرار گرفته اند. و چنین نیست که حبط اعمال بر خلاف عدل الهی باشد، بلکه امری قهری و تکوینی که نتیجه عملکرد خود ماست. «هل یجزون الا ما کانوا یعملون»(1)
اگر شخصی 20 سال خدمت مفید داشته باشد ولی فرزند کارفرمای خود را بکشد، این عمل تمام خدمات او را از بین می برد.
یک بمب که منفجر می شود و ساختمانی فرو می ریزد، تمام زحمات انسان ها را در یک لحظه از بین می برد.
یک ناسزا، دوستی چندین ساله را به فراموشی می سپارد.
خوردن یک قاشق سم، تمام مراقبت های بهداشتی چند ساله را نابود می کند.
یک لحظه خواب در هنگام رانندگی، ماشین را به درّه پرتاب می کند.
یک لحظه فرو کردن چاقو در چشم، سبب نابینایی سالیان دراز می شود.
آری، برخی گناهان همچون آتش، جنگل نیکی های انسان را سوزانده و به خاکستر تبدیل می کند. البتّه در برابر آیات حبط، آیاتی داریم که می فرماید: به خاطر یک کار شایسته، بدی های انسان محو می شود. «مَن یؤمن باللّه و یَعمل صالحاً یُکفِّر عنه سیّئاته»(2)
مثلِ کارگری که سالها بد کار می کرده ولی یک لحظه وقتی وارد منزل کارفرما می شود کودک کارفرما را می بیند که به استخر افتاده و در آستانه غرق شدن است، او را نجات می دهد. این عمل تمام بدرفتاری ها وکم کاری های او را جبران می کند.
چنانکه قرآن می فرماید: نماز به پا دارید که آن حسنه ای است که بدی ها و زشتی ها را از بین می برد. «و أقمِ الصلاه... اِنّ الحَسنات یُذهِبنَ السَّیئات»(3)
نماز
1- . اعراف ، 147.
2- . بقره، 217.
3- . تغابن،9 .