- مقدّمه ناشر: 1
- -1 6
- -2 6
- -4 7
- -7 9
- -8 9
- -9 10
- -10 11
- -11 11
- -12 12
- -13 13
- -15 14
- -17 15
- -16 15
- -19 16
- -20 17
- -21 18
- -23 19
- -24 20
- -25 20
- -26 21
- -27 22
- -28 23
- -30 24
- -32 25
- -34 26
- -33 26
- -36 27
- -35 27
- -37 28
- -38 29
- -39 29
- -40 30
- -42 31
- -43 32
- -45 33
- -46 33
- -47 34
- -49 35
- -50 36
- -51 37
- -52 38
- -53 38
- -55 39
- -54 39
- -56 40
- -57 40
- -58 41
- -59 41
- -61 42
- -62 43
- -63 43
- -65 44
- -68 46
- -71 47
- -70 47
- -72 48
- -74 49
- -75 50
- -77 51
- -78 52
- -79 53
- -81 54
- -80 54
- -82 55
- -83 56
- -85 57
- -87 58
- -86 58
- -89 59
- -90 60
- -91 60
- -93 61
- -92 61
- -95 62
- -94 62
- -96 63
- -98 64
- -97 64
- -99 65
- -100 66
- -101 66
- -103 68
- -104 69
- -106 70
- -105 70
- -107 71
- -109 72
- -108 72
- -110 73
- -113 75
- -114 76
- -115 76
- -117 77
- -116 77
- -119 78
- -121 79
- -122 80
- -123 80
- -125 81
- -127 82
- -129 84
- -130 84
- -128 84
- -132 85
- -133 86
- -134 86
- -137 87
- -136 87
- -139 88
- -138 88
- -140 89
- -141 90
- -143 91
- -142 91
- -145 92
- -144 92
- -146 93
- -147 94
- -148 95
- -149 96
- -150 97
- -151 98
- -152 98
- -154 99
- -155 100
- -156 101
- -158 102
- -159 103
- -160 104
- -161 105
- -162 105
- -163 106
- -164 107
- -168 109
- -167 109
- -169 112
- -172 116
- -174 117
- -173 117
- -175 118
- -176 119
- -178 120
- -177 120
- -181 122
- -180 122
- -182 123
- -183 123
- -184 124
- -186 126
- -185 126
- -189 127
- -187 127
- -188 127
- -191 129
- -190 129
- -193 130
- -192 130
- -194 131
- -197 132
- -196 132
- -200 133
- -198 133
- -199 133
- -201 134
- -202 134
یک جمله، یک سطر و یا یک صفحه، هماهنگی تصادفی پیدا شود، ولی در کتاب بزرگ هستی، این هماهنگی و نظم بدون پروردگاری یکتا محال است.
-135
سؤال: اگر خدایی یکتا در مصدر امور است، پس تضادهای موجود برای چیست؟
پاسخ: آنچه به نظر میآید اگر بشود نام آن را تضادّ گذاشت، باید گفت از نوع تضادّ دو لبه ی قیچی و یا دو کفّه ی ترازوست که تحت یک تدبیر و برای انجام یک هدف صورت می پذیرد و یا مثل حرکت متضادّ دو دست یک انسان برای فشار دادن پارچه ای است که می خواهد آب آن را بگیرد می باشد.
-136
انبیاء «63» قَالَ بَلْ فَعَلَهُ کَبِیرُهُمْ هَذَا فَسْئَلُوهُمْ إِن کَانُواْ یَنطِقُونَ
(ابراهیم) گفت: بلکه این بزرگشان آن را انجام داده است. پس از خودشان بپرسید اگر سخن می گویند!!
سؤال: آیا حضرت ابراهیم که معصوم است با بیان اینکه: «بت بزرگ چنین کرده » دروغ نگفته است؟
پاسخ: این خبر، مشروط به نطق بت هاست، یعنی اگر بت ها سخن گویند، بت بزرگ نیز این کار را کرده است، مثل آنکه پیرمردی بگوید، من الآن کودکم اگر هیچ گیاهی در زمین نباشد، یعنی حال که گیاه وجود دارد، پس من کودک نیستم.
-137
مؤمنون «1» قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ
قطعاً مؤمنان رستگار شدند.
سؤال: فلاح و رستگاری چیست و چه شرایطی دارد؟
پاسخ: کلمه ی «فَلاح» به معنای رستن است، شاید دلیل اینکه به کشاورز، «فَلاّح» می گویند آن باشد که وسیله ی رستن دانه را فراهم می کند. دانه که