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شرط قبله، انسان را از بی هدفی و به هر سو توجّه کردن باز می دارد.
رکوع و سجده، انسان را از تکبّر باز می دارد.
توجّه به عدالت امام جماعت، سبب دوری افراد از فسق و خلاف می شود.
نماز جماعت، انسان را از گوشه گیری نابجا نجات می دهد.
احکام و شرایط نماز جماعت، بسیاری از ارزش ها را زنده می کند از جمله: مردمی بودن، جلو نیافتادن از رهبر، عقب نماندن از جامعه، نظم و انضباط، ارزش گذاری نسبت به انسان های با تقوا، دوری از تفرقه، دوری از گرایش های مذموم نژادی، اقلیمی، سیاسی و حضور در صحنه که ترک هریک از آنها، منکر است.
لزوم تلاوت سوره حمد در هر نماز، رابطه ی انسان را با آفریننده ی جهان، «ربّ العالمین»، با تشکّر، تعبّد و خضوع در برابر او، «ایّاک نعبد» با توکّل و استمداد از او، «ایّاک نستعین»، با توجّه و یادآوری معاد، «مالک یوم الدین» با رهبران معصوم و اولیای الهی، «انعمت علیهم»، با برائت از رهبران فاسد، «غیرالمغضوب» و رابطه ی انسان را با دیگر مردم جامعه «نعبد و نستعین» بیان می کند که غفلت از هریک از آنها منکر، یا زمینه ساز منکری بزرگ است.
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روم «30» فَأَقِمْ وَجْهَکَ لِلدِّینِ حَنِیفاً فِطْرَتَ اللَّهِ الَّتِی فَطَرَ النَّاسَ عَلَیْهَا لا تَبْدِیلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَ لِکَ الدِّینُ الْقَیِّمُ وَ لَکِنَّ أَکْثَرَ النَّاسِ لایَعْلَمُونَ
پس با گرایش به حقّ به این دین روی بیاور، (این) فطرت الهی است که خداوند مردم را بر اساس آن آفریده است، برای آفرینش الهی دگرگونی نیست، این است دین پایدار، ولی بیشتر مردم نمی دانند.
سؤال: فطرت به چه معناست؟
پاسخ: فطرت در لغت به معنای خلقت و شکافتن پرده ی عدم و آفرینش یک موجود است. گویا خداوند انسان را به گونه ای آفریده که به حقّ تمایل دارد