پاسخ های حضرت آیت الله العظمی روحانی (مد ظله العالی)به استفتائات قوه قضائیه و موسسه حقوقی وکلای بین الملل صفحه 290
- مقدمه: اجتهاد، رمز جاوید ماندن اسلام 1
- اشاره 1
- 2- در اسلام برای هر موضوعی حکمی است 4
- اشاره 11
- جواب: 12
- جواب: 13
- جواب: 14
- جواب 15
- جواب: 16
- جواب: 17
- جواب: 18
- جواب: 19
- جواب: 20
- جواب: 22
- جواب: 23
- جواب: 24
- جواب: 25
- جواب: 26
- جواب: 27
- جواب: 28
- جواب: 29
- جواب: 30
- جواب: 31
- جواب: 32
- جواب: 33
- جواب: 34
- جواب: 35
- جواب: 36
- جواب: 38
- جواب: 39
- جواب: 40
- جواب: 41
- جواب: 46
- جواب: 47
- جواب: 48
- جواب: 49
- جواب: 50
- جواب: 51
- جواب: 52
- جواب: 53
- جواب: 55
- جواب: 56
- جواب: 59
- جواب: 60
- جواب: 63
- جواب: 64
- جواب: 65
- جواب: 66
- جواب: 68
- جواب: 70
- جواب: 71
- جواب: 72
- جواب: 73
- جواب: 74
- جواب: 75
- جواب: 76
- جواب: 77
- جواب: 78
- جواب: 79
- جواب: 80
- جواب: 81
- جواب: 82
- جواب: 84
- جواب: 85
- جواب: 86
- جواب: 87
- جواب: 88
- جواب: 89
- جواب: 90
- جواب: 92
- جواب: 93
- جواب: 97
- جواب: 98
- جواب: 99
- جواب: 100
- جواب: 101
- جواب: 102
- جواب: 105
- جواب: 106
- جواب: 109
- جواب: 110
- جواب: 111
- جواب: 112
- جواب: 115
- جواب: 116
- جواب: 117
- جواب: 118
- جواب: 119
- جواب: 120
- جواب: 121
- جواب: 123
- جواب: 124
- جواب: 125
- جواب: 126
- جواب: 127
- جواب: 129
- جواب: 130
- جواب: 132
- جواب: 133
- جواب: 135
- جواب: 136
- جواب: 138
- جواب: 139
- جواب: 141
- جواب: 142
- جواب: 143
- جواب: 145
- جواب: 146
- جواب: 147
- جواب: 148
- جواب: 149
- جواب: 150
- جواب: 151
- جواب: 152
- جواب: 153
- جواب: 154
- اشاره 156
- جواب: 159
- جواب: 160
- جواب: 161
- جواب: 162
- جواب: 163
- جواب: 164
- جواب: 165
- جواب: 166
- جواب: 167
- جواب: 168
- جواب: 169
- جواب: 170
- جواب: 171
- جواب: 172
- جواب: 173
- جواب: 174
- جواب: 175
- جواب: 176
- جواب: 177
- جواب: 178
- جواب: 179
- جواب: 180
- جواب: 181
- جواب: 182
- جواب: 183
- جواب: 184
- جواب: 185
- جواب: 186
- جواب: 187
- جواب: 188
- جواب: 189
- جواب: 190
- جواب: 191
- جواب: 192
- جواب: 193
- جواب: 194
- جواب: 195
- جواب: 196
- جواب: 197
- جواب: 198
- جواب: 199
- جواب: 200
- جواب: 201
- جواب: 202
- جواب: 203
- جواب: 204
- جواب: 205
- جواب: 206
- جواب: 207
- جواب: 208
- جواب: 209
- جواب: 210
- جواب: 211
- جواب: 212
- جواب: 213
- جواب: 214
- جواب: 215
- جواب: 216
- جواب: 217
- جواب: 218
- جواب: 219
- جواب: 220
- جواب: 221
- جواب: 222
- جواب: 223
- جواب: 224
- جواب: 225
- جواب: 226
- جواب: 227
- جواب: 228
- جواب: 229
- جواب: 230
- جواب: 231
- جواب: 232
- جواب: 233
- جواب: 234
- جواب: 235
- جواب: 236
- جواب: 237
- جواب: 238
- جواب: 239
- جواب: 240
- جواب: 241
- جواب: 242
- جواب: 243
- جواب: 244
- جواب: 245
- جواب: 246
- جواب: 247
- جواب: 248
- جواب: 249
- جواب: 250
- جواب: 251
- جواب: 252
- جواب: 253
- جواب: 254
- جواب: 255
- جواب: 256
- جواب: 257
- سؤال: 258
- جواب: 258
- جواب: 259
- جواب: 260
- جواب: 261
- جواب: 262
- جواب: 263
- جواب: 264
- جواب: 265
- جواب: 266
- جواب: 267
- جواب: 268
- جواب: 269
- جواب: 270
- جواب: 271
- جواب: 272
- جواب: 273
- جواب: 274
- جواب: 275
- جواب: 276
- جواب: 277
- جواب: 278
- جواب: 279
- جواب: 280
- جواب: 281
- جواب: 282
- جواب: 283
- جواب: 284
- جواب: 285
- جواب: 286
- جواب: 287
- جواب: 288
- جواب: 289
- جواب: 290
- جواب: 291
- جواب: 292
- جواب: 293
- جواب: 294
- جواب: 295
- جواب: 296
- جواب: 297
- جواب: 298
- جواب: 299
- جواب: 300
- جواب: 301
- جواب: 302
- جواب: 303
- جواب: 304
- جواب: 305
- جواب: 306
- جواب: 307
- جواب: 308
- جواب: 309
- جواب: 310
- جواب: 311
- جواب: 312
- جواب: 313
- جواب: 314
- جواب: 315
- جواب: 316
- جواب: 317
- جواب: 318
- جواب: 319
ص:292
1- (1) . (هامش: تاریخ جواب استفتاء: 28 صفر 1419).
سؤال:
اگر مسئولین ادارات که به علل هواپرستی و تمایلات نفسانی، بر برخی کارمندان زیردست حساسیت پیدا کرده و در مورد آنان کارشکنی می کنند که یا ناچار به استعفا شده و یا پس از عدم پذیرفتن استعفا از طریق غیبت کردن، اخراج می شوند و از این بابت متحمل خسارات مالی زیادی شوند، آیا ضمان اینگونه خسارت به عهد مسئولین ذیربط است یا نه؟
جواب:
(باسمه جلت اسمائه)
چنانچه کارمند استخدام رسمی شده باشد و مسئول ادار کارشکنی بنماید و او را عزل کند، برخلاف قوانین ادار مربوطه، خسارت وارده (قطع مقرری اداره) به عهد مسئول است، ولی اگر مسئول سبب شود که خود او استعفاء دهد یا از طریق غیبت اختیاری اخراج شود، ضمان ندارد، ولو این که کار خلافی انجام داده است. (1)