- کتاب الدین 1
- کتاب الدین من المجلد الاول 1
- 1 : سؤال: 1
- جواب: 1
- جواب: 3
- 2:سوال: 3
- 3 : سؤال: 4
- 4:سوال: 4
- جواب: 4
- 5:سوال: 4
- جواب: 4
- جواب: 5
- جواب: 6
- کتاب الدین من المجلد الثانی 6
- 6:سوال: 6
- جواب: 14
- 7:سوال: 14
- 8:سوال: 15
- جواب: 15
- پنجم: از آنچه در مقدمه چهارم گفتیم ظاهر شد که عقد قرض از حیثیتی جایز است، واز حیثیتی لازم. پس هر گاه شرط مشروعی در ضمن عقد قرض بشود از حیثیت لزوم، لازم خواهد بود، چنانکه مقتضای عقود لازمه است ومؤید آن است عمومات (اوفوا بالعقود) و (المومنون عند شروطهم). واز جمله شروط جایزه است این که در قرض غیر قیمی شرط کند عوض دادن مثل آن را در صفات. وصورت سوال: 23
- جواب: 30
- 7 مکرر: سوال: 30
- 8 مکرر:سوال: 30
- جواب: 31
- 9:سوال: 31
- جواب: 31
- جواب: 32
- جواب: 32
- 10: سوال: 32
- 11 :سوال: 32
- جواب: اما از سوال: 33
- 13:سوال: 33
- جواب: 33
- 12:سوال: 33
- کتاب الدین من المجلد الثالث 35
- 15:سوال: 35
- جواب: 35
- 14:سوال: 35
- 16:سوال: 35
- جواب: 35
- 17:سوال: 37
- جواب: 37
- جواب: 38
- 19:سوال: 39
- اشاره 39
- جواب: 39
- 21 :سوال: 41
- جواب: 41
- جواب: 41
- 20:سوال: 41
- جواب: 42
- 22:سوال: 42
- جواب: 43
- 23:سوال: 43
- کتاب الضمان من المجلد الثالث 43
- جواب: این سوال: 43
- جواب: 45
- 24:سوال: 45
- 25:سوال: 45
- جواب: 45
- جواب: 48
- 26:سوال: 48
- جواب: 49
- 27:سوال: 49
- جواب: 52
- 29:سوال: 56
- جواب: 57
- 30:سوال: 91
- جواب: 91
- جواب: 91
- کتاب الصلح من المجلد الاول 91
- اشاره 91
- 31 :سوال: 91
- 33:سوال: 92
- 32:سوال: 92
- جواب: 92
- جواب: 92
- جواب: 93
- 35:سوال: 93
- جواب: 94
- جواب: 95
- 37:سوال: 100
- جواب: 100
- 38:سوال: 101
- جواب: 102
- جواب: 103
- 39:سوال: 103
- جواب: 104
- مسأله تزاحم الحقوق:41 :سوال: 104
- جواب: 104
- 40:سوال: 104
- کتاب الصلح من المجلد الثانی 105
- جواب: 105
- 42:سوال: 105
- جواب: 105
- 43:سوال: 105
- جواب: 112
- 45 و 46سوال: 129
- جواب: 129
- جواب: صورت سوال: 133
- 47:سوال: 133
- جواب: 133
- 48:سوال: 135
- جواب: 136
- 49:سوال: 139
- جواب: 140
- جواب: 143
- 51 :سوال: 143
- 50:سوال: 143
- جواب: 144
- جواب: این محتاج به مرافعه است. ومجرد کاغذ حجت نیست هر چند (اقرت واعترفت) نوشته باشند در اینجا، چه جای تحقق وثبت. مگر این که آن کاغذ ونوشته کاغذی باشد که از برای حاکم (یعنی مجتهد عادل) مفید قطع باشد، واین بسیار نادر است. و هر گاه مفید علم نشود باید رجوع کرد به بینه. واز صورت سوال: 144
- 52:سوال: 144
- جواب: 145
- 53:سوال: 148
- 54:سوال: 148
- جواب: 148
- 55:سوال: 149
- جواب: 149
- 56:سوال: 149
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- جواب: 150
- جواب: 151
- 57:سوال: 151
- 58:سوال: 156
- 59:سوال: 156
- جواب: 156
- جواب: 158
- 60:سوال: 158
- جواب: 159
- 61 :سوال: 159
- 62:سؤال: 159
- جواب: ظاهر این است که شرط صحیح باشد ووفای به آن لازم. واما سوال: 159
- جواب: 160
- 63:سوال: 161
- جواب: 161
- جواب: 163
- 65:سوال: 164
- جواب: 164
- جواب: 168
- 66:سوال: 168
- 67:سوال: 168
- جواب: 168
- جواب: 169
- 68:سوال: 169
- جواب: 170
- جواب: 170
- 70:سوال: 170
- 69:سوال: 170
- 71 :سوال: 171
- 72:سوال: 173
- جواب: 174
- 73:سوال: 174
- 76:سوال: 175
- 74:سوال: 175
- جواب: 175
- 75:سوال: 175
- جواب: 175
- جواب: 176
- 77:سوال: 177
- جواب: 177
- 78:سوال: 178
- جواب: ملاکی که راضی نیستند که عمرو آب ببرد به خانه خود به پایاب خود، میتوانند مانع عمرو شوند از بردن آب. چون این معنی تصرفی است در اصل آب شرکاء بدون اذن ایشان. وایضا تصرفی است در خانه نهر مشترک که مجرای آب است به چاه زید. وجواز تصرف زید به سبب استمرار از استحقاق قدیم منشأ جواز تصرف عمرو نمی شود. هر چند عمرو شق نهری تازه به آن خانه نهر نکرده است. واز اینجا معلوم شد که در درون نوبه خود یا نوبه سایر شرکاء که راضی هستند هم نمی تواند آب از آن مجرا ببرد، هر چند آب مال خود او یا مال شرکائی است که راضیاند. واما سوال از لزوم نوبت ومهایات: پس آن عقد لازمی نیست. وهر وقت بخواهند بر هم میزنند. ووقتی که بر هم زدند آن شخصی که نوبت خود را برده باید اجرت المثل مجرا را به قدر حصه شرکاء به آنها رساند. واما سوال: از مانع شدن عمرو وسایر شرکاء از تصرف در آن: پس اگر مراد منع مطلق است پس آن بی وجه است. واگر مراد عدم رضای تصرف بر نوبه قدیم [ است ] و [ می ] خواهد تجدید بنای نو به ومهایات گذارد، یا هر گاه که ممکن شود خواهد قسمت آب بکند، می تواند که چنین کند. اما ایشان را معطل نمی تواند گذاشت که انتقام بکشد و آب شرکا از میان برود. بلکه باید فورا بنای درستی بگذارد به رضای شرکا. واما سوال: 179
- جواب: 179
- جواب: 180
- 79: سوال: 180
- 80:سوال: 181
- جواب: 183
- 81 :سوال: 183
- 82:سوال: 184
- جواب: 184
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- 85:سوال: 185
- جواب: 185
- 84:سوال: 185
- جواب: 186
- 86:سوال: 186
- جواب: 186
- جواب: 186
- جواب: 187
- 88:سوال: 187
- جواب: 187
- 90:سوال: 191
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- 89:سوال: 191
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- جواب: 192
- 91 :سوال: 192
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- جواب: 194
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- 96:سوال: 195
- جواب: 195
- 97:سوال: 198
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- 99:سوال: 201
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- جواب: 201
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- 102:سوال: 207
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- جواب: 207
- 101 :سوال: 207
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- : 103 سوال: 207
- 104:سوال: 208
- جواب: 208
- جواب: 210
- 105:سوال: 210
- 106:سوال: 216
- جواب: 216
- 107:سوال: 225
- جواب: 225
- 108:سوال: 226
- جواب: 226
- کتاب الشرکه من المجلد الاول 228
- جواب: 228
- 109:سوال: 228
- 110:سوال: 229
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- 111 :سوال: 230
- 112:سوال: 230
- 113:سوال: 231
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- 114:سوال: 232
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- 116:سوال: 233
- جواب: 233
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- کتاب الشرکه من المجلد الثانی 234
- 117:سوال: 234
- جواب: 234
- جواب: 234
- 118:سوال: 235
- جواب: 235
- جواب: 236
- 119:سوال: 236
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- 120:سوال: 237
- 121 :سوال: 237
- 123:سوال: 238
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- جواب: 244
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- کتاب الشرکه من المجلد الثالث 257
- جواب: 257
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- جواب: 258
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- 134:سوال: 272
- 135:سوال: 272
- جواب: 272
- جواب: 273
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- کتاب القسمه من المجلد الاول 274
- 136:سوال: 274
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- جواب: 275
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- کتاب القسمه من المجلد الثانی 276
- جواب: 276
- 139:سوال: 276
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- جواب: 279
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- 147:سوال: 288
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- 151 :سوال: 297
- 150:سوال: 297
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- جواب: 300
- کتاب القسمه من المجلد الثالث 300
- 153:سوال: 300
- 155:سوال: 301
- جواب: 302
- جواب: 303
- 156:سوال: 303
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- جواب: 310
- 158:سوال: 310
- کتاب المضاربه من المجلد الاول 310
- جواب: 310
- کتاب المضاربه من المجلد الثانی 312
- 159:سوال: 312
- جواب: 312
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- جواب: نظر به سوال: 316
- جواب: 316
- 161 :سوال: 316
- جواب: 316
- 162:سوال: 317
- جواب: 318
- 163:سوال: 322
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- جواب: 329
- کتاب المضاربه من المجلد الثالث 329
- 164:سوال: 329
- 165:سوال: 330
- جواب: در صورت سوال: 330
- جواب: 330
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- جواب: 336
- 167:سوال: 338
- جواب: 338
- کتاب المزارعه والمسافات من المجلد الاول 360
- 168:سوال: 360
- جواب: 360
- جواب: 362
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- جواب: 363
- جواب: از ظاهر سوال: 363
- کتاب المزارعه من المجلد الثانی 363
- 170:سوال: 363
- جواب: 366
- کتاب المزارعه من المجلد الثالث 366
- 171 :سوال: 366
- 172:سوال: 370
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- جواب: 371
- 174:سوال: 372
- جواب: 372
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- 178:سوال: 382
- کتاب الودیعه من المجلد الاول 382
- جواب: 382
- جواب: 382
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- 179:سوال: 383
- کتاب الودیعه من المجلد الثانی 383
- 180:سوال: 385
- جواب: 385
- 181 :سوال: 386
- جواب: 386
- جواب: 389
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- جواب: 390
- 184:سوال: 390
- کتاب الودیعه من المجلد الثالث 390
- جواب: 391
- 185:سوال: 394
- کتاب العاریه من المجلد الاول 394
- جواب: 394
- 186:سوال: 396
- کتاب العاریه من المجلد الثانی 396
- جواب: 397
- جواب: 398
- 187:سوال: 398
- 188:سوال: 398
- جواب: 398
- 189:سوال: 399
- 190:سوال: 402
- جواب: 402
- کتاب العاریه من المجلد الثالث 404
- 191 :سوال: 404
- جواب: 405
- 192:سوال: 415
- کتاب الاجاره من المجلد الاول 415
- جواب: 415
- جواب: 421
- 194:سوال: 421
- جواب: 421
- 193:سوال: 421
- جواب: 422
- 196:سوال: 422
- جواب: 422
- 197:سوال: 423
- جواب: 423
- جواب: 425
- 198:سوال: 425
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- جواب: 426
- 200:سوال: 426
- 201 :سوال: 427
- جواب: 427
- جواب: 428
- 202:سوال: 428
- 203:سوال: 429
- جواب: 429
- جواب: 431
- 205:سوال: 431
- جواب: 431
- 204:سوال: 431
- 206:سوال: 432
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- 207 :سوال: 433
- 208:سوال: 434
- جواب: 434
- جواب: 434
- جواب: 439
- جواب: 439
- 210:سوال: 439
- 211 :سوال: 439
- 209:سوال: 439
- 212:سوال: 441
- 213:سوال: 442
- 214:سوال: 442
- جواب: 442
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- جواب: 443
- 217:سوال: 443
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- جواب: 444
- 218:سوال: 444
- 219:سوال: 444
- جواب: 444
- جواب: 444
- جواب: 444
- 220:سوال: 444
- 222:سوال: 449
- جواب: 449
- 223:سوال: 449
- جواب: 449
- کتاب الاجاره من المجلد الثانی 451
- 224:سوال: 451
- جواب: 451
- 225:سوال: 453
- جواب: 453
- 228:سوال: 454
- جواب: 454
- 226:سوال: 454
- 227:سوال: 454
- جواب: 454
- جواب: 454
- جواب: 456
- 229:سوال: 456
- جواب: 457
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- 231 :سوال: 461
- جواب: 461
- جواب: 462
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- 233:سوال: 462
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- 234:سوال: 463
- جواب: 463
- 236:سوال: 464
- جواب: 465
- 237:سوال: 466
- جواب: 466
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- جواب: 467
- 241 :سوال: 468
- جواب: 468
- جواب: 468
- 242:سوال: 468
- 240:سوال: 468
- 243: سوال: 470
- جواب: 470
- 244:سوال: 474
- جواب: 474
- 245:سوال: 478
- جواب: 479
- 246:سوال: 479
- جواب: 479
- 247:سوال: 480
- جواب: این سوال: 481
- جواب: 481
- 248:سوال: 481
- 249:سوال: 484
- کتاب الاجاره من المجلد الثالث 484
- جواب: 485
- جواب: 485
- 250:سوال: 485
- جواب: 486
- جواب: 486
- 253:سوال: 486
- جواب: 486
- 252:سوال: 486
- جواب: 487
- جواب: 487
- 254: سوال: 487
- جواب: 488
- جواب: 488
- 256:سوال: 488
- 255:سوال: 488
- 257:سوال: 489
- جواب: 490
- 258:سوال: 491
- جواب: 491
- 259: سوال: 492
- جواب: 492
- جواب: 509
- :261 سوال: 509
- جواب: 509
- 260:سوال: 509
- 263:سوال: 510
- جواب: 510
- جواب: 510
- 262:سوال: 510
- جواب: 511
- کتاب الوکاله من المجلد الاول 511
- 264:سوال: 511
- جواب: 514
- 266:سوال: 514
- 268:سوال: 515
- 267:سوال: 515
- جواب: 515
- جواب: 515
- جواب: 516
- 269:سوال: 516
- جواب: 519
- 270:سوال: 519
- جواب: 520
- 271سوال: 520
- 273:سوال: 521
- 272:سوال: 521
- جواب: 521
- 274:سوال: 522
- کتاب الوکاله من المجلد الثالث 522
- جواب: 522
- جواب: 523
- 275:سوال: 523
- 276:سوال: 528
- جواب: 528
- جواب: 530
- 278:سوال: 533
- جواب: 533
- 279:سوال: 533
- جواب: 533
- 280:سوال: 533
- جواب: 534
که الزام کند موجر را که عین مستأجره را از دست غاصب بگیرد وتسلیم نماید هر گاه قادر باشد بر آن. به جهت این که خیار فسخ دفع ضرر از او میکند. چنانکه علامه در تحریر تصریح به آن کرده. و هم چنین ظاهر کلام او است در ارشاد. وآخوند ملا احمد (ره) احتمال جواز الترام داده به جهت آن که تسلیم واجب است. و مفروض این است که موجر قادر بر تسلیم هست. واین ضعیف است به جهت این که قدر مسلم از وجوب تسلیم، رفع ید خود است از عین. نه رفع ید غاصب، وضرری هم بر مستأجر لازم نمی آید، به جهت خیار فسخ.
230:سوال:
230:سوال: هر گاه شخصی وجهی به کسی داد که چند سال صوم وصلات به جهت زید بکند. هر گاه صیغه اجاره به عربی وفارسی هیچ کدام خوانده نشود. آیا این جایز است یا نه؟ -؟ و هر گاه جایز باشد، آیا بر موجر واجب است که فورا به عمل بیاورد در صورت اطلاق، یا نه؟ -؟ و هر گاه فورا واجب شد، آیا متحقق می شود فوریت به این که هر روز، یک روز یا دو روز آن را بکند یا نه؟ -؟ و هر گاه فورا واجب باشد موجر تاخیر کرد تا سه چهار سال، هر گاه بعد بکند ذمه اش بری می شود یا نه؟ -؟ و هر گاه در این ایام که ترک کرده لباسی به آن وجه بخرد وبه آن لباس نماز خود را کرده باشد، آن نماز صحیح است یا نه وغافل بالمره نبوده -؟ -؟. وآیا موجر در صورتی که صیغه نخوانده می تواند کسی دیگری را استیجار کند به جهت صوم وصلات مستأجر؟ یا باید اذن بگیرد؟ و هر گاه خودش قدری را بکند جایز است که غیر را استیجار کند هر چند به کمتر از آن اجرت باشد که مستأجر به او داده -؟ آیا هر گاه روزه را گرفته واز نماز هیچ نکرده می تواند نمازش را به کمتر اجاره بدهد یا نه؟ -؟.
جواب:
جواب: مشهور علما - بلکه ظاهرا خلافی نیست. چنانکه از بعضی ظاهر می شود - اشتراط ایجاب وقبول در عقد اجاره، [ است ]. ودور نیست معاطات در آن جاری باشد. چنانکه بعضی اصحاب به آن قایل شده اند. پس به سبب آن اباحه تصرف می تواند شد هر چند لزوم نداشته باشد. واظهر آن است که در معاطات فعلیت اقباض از جانبین شرط نباشد. پس چنانکه در بیع معاطات هر گاه کسی متاعی را مساومه کند وبه قیمت