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تفسير عاملى

جلد اول

(سوره بقره)

[سوره البقرة(2): آيات 1 تا 5] [سوره البقرة(2): آيات 6 تا 7] [سوره البقرة(2): آيات 8 تا 20] [سوره البقرة(2): آيات 21 تا 25] [سوره البقرة(2): آيه 26] [سوره البقرة(2): آيات 27 تا 29] [سوره البقرة(2): آيات 30 تا 33] [سوره البقرة(2): آيات 34 تا 39] [سوره البقرة(2): آيات 40 تا 46] [سوره البقرة(2): آيات 47 تا 48] [سوره البقرة(2): آيه 49] [سوره البقرة(2): آيات 50 تا 54] [سوره البقرة(2): آيات 55 تا 59] [سوره البقرة(2): آيات 60 تا 61] [سوره البقرة(2): آيات 62 تا 66] [سوره البقرة(2): آيات 67 تا 71] [سوره البقرة(2): آيات 72 تا 74] [سوره البقرة(2): آيات 75 تا 77] [سوره البقرة(2): آيات 78 تا 82] [سوره البقرة(2): آيات 83 تا 86] [سوره البقرة(2): آيات 87 تا 90] [سوره البقرة(2): آيات 91 تا 92] [سوره البقرة(2): آيات 93 تا 96] [سوره البقرة(2): آيات 97 تا 103] [سوره البقرة(2): آيات 104 تا 107] [سوره البقرة(2): آيات 108 تا 110] [سوره البقرة(2): آيات 111 تا 113] [سوره البقرة(2): آيه 114] [سوره البقرة(2): آيه 115] [سوره البقرة(2): آيات 116 تا 121] [سوره البقرة(2): آيات 122 تا 123] [سوره البقرة(2): آيه 124] [سوره البقرة(2): آيات 125 تا 126] [سوره البقرة(2): آيات 127 تا 134] [سوره البقرة(2): آيه 135] [سوره البقرة(2): آيات 136 تا 138] [سوره البقرة(2): آيات 139 تا 141] [سوره البقرة(2): آيات 142 تا 143] [سوره البقرة(2): آيات 144 تا 147] [سوره البقرة(2): آيات 148 تا 152] [سوره البقرة(2): آيات 153 تا 157] [سوره البقرة(2): آيات 158 تا 162] [سوره البقرة(2): آيات 163 تا 164] [سوره البقرة(2): آيات 165 تا 167] [سوره البقرة(2): آيات 168 تا 170] [سوره البقرة(2): آيه 171] [سوره البقرة(2): آيات 172 تا 173] [سوره البقرة(2): آيات 174 تا 176] [سوره البقرة(2): آيه 177] [سوره البقرة(2): آيات 178 تا 179] [سوره البقرة(2): آيات 179 تا 182] [سوره البقرة(2): آيات 183 تا 185] [سوره البقرة(2): آيات 186 تا 187] [سوره البقرة(2): آيه 188] [سوره البقرة(2): آيه 189] [سوره البقرة(2): آيات 190 تا 195] [سوره البقرة(2): آيات 196 تا 197] [سوره البقرة(2): آيات 198 تا 203] [سوره البقرة(2): آيات 204 تا 207] [سوره البقرة(2): آيات 208 تا 210] [سوره البقرة(2): آيات 211 تا 212] [سوره البقرة(2): آيه 213] [سوره البقرة(2): آيه 214] [سوره البقرة(2): آيه 215] [سوره البقرة(2): آيه 216] [سوره البقرة(2): آيات 217 تا 218] [سوره البقرة(2): آيات 219 تا 220] [سوره البقرة(2): آيه 221] [سوره البقرة(2): آيات 222 تا 223] [سوره البقرة(2): آيات 224 تا 225] [سوره البقرة(2): آيات 226 تا 227] [سوره البقرة(2): آيه 228] [سوره البقرة(2): آيه 229] [سوره البقرة(2): آيات 230 تا 231] [سوره البقرة(2): آيه 232] [سوره البقرة(2): آيه 233] [سوره البقرة(2): آيات 234 تا 235] [سوره البقرة(2): آيات 236 تا 237] [سوره البقرة(2): آيات 238 تا 239] [سوره البقرة(2): آيات 240 تا 242] [سوره البقرة(2): آيه 243] [سوره البقرة(2): آيه 244] [سوره البقرة(2): آيه 245] [سوره البقرة(2): آيات 246 تا 247] [سوره البقرة(2): آيات 248 تا 252] [سوره البقرة(2): آيه 253] [سوره البقرة(2): آيه 254] [سوره البقرة(2): آيه 255] [سوره البقرة(2): آيه 256] [سوره البقرة(2): آيه 257] [سوره البقرة(2): آيات 258 تا 259] [سوره البقرة(2): آيه 260] [سوره البقرة(2): آيات 261 تا 264] [سوره البقرة(2): آيات 265 تا 266] [سوره البقرة(2): آيه 267] [سوره البقرة(2): آيات 268 تا 269] [سوره البقرة(2): آيه 270] [سوره البقرة(2): آيه 271] [سوره البقرة(2): آيات 272 تا 273] [سوره البقرة(2): آيه 274] [سوره البقرة(2): آيات 275 تا 277] [سوره البقرة(2): آيات 278 تا 280] [سوره البقرة(2): آيه 281] [سوره البقرة(2): آيات 282 تا 283] [سوره البقرة(2): آيه 284] [سوره البقرة(2): آيات 285 تا 286]

جلد دوم

سوره آل عمران

[سوره آل‏عمران(3): آيات 1 تا 9] [سوره آل‏عمران(3): آيات 10 تا 13] [سوره آل‏عمران(3): آيه 14] [سوره آل‏عمران(3): آيات 15 تا 17] [سوره آل‏عمران(3): آيات 18 تا 20] [سوره آل‏عمران(3): آيات 21 تا 22] [سوره آل‏عمران(3): آيات 23 تا 25] [سوره آل‏عمران(3): آيات 26 تا 27] [سوره آل‏عمران(3): آيات 28 تا 30] [سوره آل‏عمران(3): آيات 31 تا 32] [سوره آل‏عمران(3): آيات 33 تا 37] [سوره آل‏عمران(3): آيات 38 تا 41] [سوره آل‏عمران(3): آيات 42 تا 43] [سوره آل‏عمران(3): آيه 44] [سوره آل‏عمران(3): آيات 45 تا 51] [سوره آل‏عمران(3): آيات 52 تا 58] [سوره آل‏عمران(3): آيات 59 تا 63] [سوره آل‏عمران(3): آيات 64 تا 68] [سوره آل‏عمران(3): آيات 69 تا 74] [سوره آل‏عمران(3): آيات 75 تا 77] [سوره آل‏عمران(3): آيه 78] [سوره آل‏عمران(3): آيات 79 تا 80] [سوره آل‏عمران(3): آيات 81 تا 83] [سوره آل‏عمران(3): آيات 84 تا 85] [سوره آل‏عمران(3): آيات 86 تا 89] [سوره آل‏عمران(3): آيات 90 تا 91] [سوره آل‏عمران(3): آيه 92] [سوره آل‏عمران(3): آيات 93 تا 95] [سوره آل‏عمران(3): آيات 96 تا 97] [سوره آل‏عمران(3): آيات 98 تا 99] [سوره آل‏عمران(3): آيات 100 تا 103] [سوره آل‏عمران(3): آيات 104 تا 107] [سوره آل‏عمران(3): آيات 108 تا 109] [سوره آل‏عمران(3): آيات 110 تا 112] [سوره آل‏عمران(3): آيات 113 تا 115] [سوره آل‏عمران(3): آيات 116 تا 117] [سوره آل‏عمران(3): آيات 118 تا 120] [سوره آل‏عمران(3): آيات 121 تا 129] [سوره آل‏عمران(3): آيات 130 تا 136] [سوره آل‏عمران(3): آيات 137 تا 141] [سوره آل‏عمران(3): آيات 142 تا 148] [سوره آل‏عمران(3): آيات 149 تا 151] [سوره آل‏عمران(3): آيات 152 تا 155] [سوره آل‏عمران(3): آيات 156 تا 158] [سوره آل‏عمران(3): آيات 159 تا 160] [سوره آل‏عمران(3): آيات 161 تا 164] [سوره آل‏عمران(3): آيات 165 تا 168] [سوره آل‏عمران(3): آيات 169 تا 175] [سوره آل‏عمران(3): آيات 176 تا 179] [سوره آل‏عمران(3): آيات 180 تا 184] [سوره آل‏عمران(3): آيات 185 تا 186] [سوره آل‏عمران(3): آيات 187 تا 189] [سوره آل‏عمران(3): آيات 190 تا 195] [سوره آل‏عمران(3): آيات 196 تا 200]
فهرست مطالب

جلد سوم

تتمه سوره نساء

[سوره النساء(4): آيات 58 تا 59] [سوره النساء(4): آيات 60 تا 63] [سوره النساء(4): آيات 64 تا 65] [سوره النساء(4): آيات 66 تا 68] [سوره النساء(4): آيات 69 تا 70] [سوره النساء(4): آيات 71 تا 73] [سوره النساء(4): آيات 74 تا 76] [سوره النساء(4): آيات 77 تا 79] [سوره النساء(4): آيات 80 تا 82] [سوره النساء(4): آيه 83] [سوره النساء(4): آيه 84] [سوره النساء(4): آيات 85 تا 87] [سوره النساء(4): آيات 88 تا 91] [سوره النساء(4): آيات 92 تا 93] [سوره النساء(4): آيه 94] [سوره النساء(4): آيات 95 تا 96] [سوره النساء(4): آيات 97 تا 100] [سوره النساء(4): آيات 101 تا 103] [سوره النساء(4): آيه 104] [سوره النساء(4): آيات 105 تا 113] [سوره النساء(4): آيات 114 تا 115] [سوره النساء(4): آيات 116 تا 122] [سوره النساء(4): آيات 123 تا 126] [سوره النساء(4): آيات 127 تا 130] [سوره النساء(4): آيات 131 تا 134] [سوره النساء(4): آيات 135 تا 136] [سوره النساء(4): آيات 137 تا 141] [سوره النساء(4): آيات 142 تا 147] [سوره النساء(4): آيات 148 تا 149] [سوره النساء(4): آيات 150 تا 152] [سوره النساء(4): آيات 153 تا 159] [سوره النساء(4): آيات 160 تا 162] [سوره النساء(4): آيات 163 تا 166] [سوره النساء(4): آيات 167 تا 170] [سوره النساء(4): آيات 171 تا 173] [سوره النساء(4): آيات 174 تا 175] [سوره النساء(4): آيه 176]

سوره مائده

[سوره المائدة(5): آيات 1 تا 2] [سوره المائدة(5): آيات 3 تا 5] [سوره المائدة(5): آيات 6 تا 7] [سوره المائدة(5): آيات 8 تا 11] [سوره المائدة(5): آيات 12 تا 14] [سوره المائدة(5): آيات 15 تا 16] [سوره المائدة(5): آيات 17 تا 19] [سوره المائدة(5): آيات 20 تا 26] [سوره المائدة(5): آيات 27 تا 32] [سوره المائدة(5): آيات 33 تا 34] [سوره المائدة(5): آيات 35 تا 37] [سوره المائدة(5): آيات 38 تا 40] [سوره المائدة(5): آيات 41 تا 46] [سوره المائدة(5): آيات 44 تا 47] [سوره المائدة(5): آيات 48 تا 50] [سوره المائدة(5): آيات 51 تا 53] [سوره المائدة(5): آيات 54 تا 56] [سوره المائدة(5): آيات 57 تا 63] [سوره المائدة(5): آيات 64 تا 66] [سوره المائدة(5): آيات 67 تا 69] [سوره المائدة(5): آيات 70 تا 75] [سوره المائدة(5): آيات 76 تا 81] [سوره المائدة(5): آيات 82 تا 86] [سوره المائدة(5): آيات 87 تا 88] [سوره المائدة(5): آيه 89] [سوره المائدة(5): آيات 90 تا 93] [سوره المائدة(5): آيات 94 تا 100] [سوره المائدة(5): آيات 101 تا 105] [سوره المائدة(5): آيات 106 تا 109] [سوره المائدة(5): آيات 110 تا 115] [سوره المائدة(5): آيات 116 تا 120]

سوره‏ى انعام

[سوره الأنعام(6): آيات 1 تا 3] [سوره الأنعام(6): آيات 4 تا 6] [سوره الأنعام(6): آيات 7 تا 9] [سوره الأنعام(6): آيات 10 تا 11] [سوره الأنعام(6): آيات 12 تا 19] [سوره الأنعام(6): آيات 20 تا 24] [سوره الأنعام(6): آيات 25 تا 26] [سوره الأنعام(6): آيات 27 تا 28] [سوره الأنعام(6): آيات 29 تا 32] [سوره الأنعام(6): آيات 33 تا 35] [سوره الأنعام(6): آيات 36 تا 37] [سوره الأنعام(6): آيات 38 تا 39] [سوره الأنعام(6): آيات 40 تا 45] [سوره الأنعام(6): آيات 46 تا 49] [سوره الأنعام(6): آيات 50 تا 53] [سوره الأنعام(6): آيات 54 تا 55] [سوره الأنعام(6): آيات 56 تا 58] [سوره الأنعام(6): آيات 59 تا 62] [سوره الأنعام(6): آيات 63 تا 64] [سوره الأنعام(6): آيات 65 تا 67] [سوره الأنعام(6): آيات 68 تا 70] [سوره الأنعام(6): آيات 71 تا 73] [سوره الأنعام(6): آيات 74 تا 79] [سوره الأنعام(6): آيات 80 تا 83] [سوره الأنعام(6): آيات 84 تا 90] [سوره الأنعام(6): آيات 91 تا 92] [سوره الأنعام(6): آيات 93 تا 94] [سوره الأنعام(6): آيات 95 تا 99] [سوره الأنعام(6): آيات 100 تا 103] [سوره الأنعام(6): آيات 104 تا 107] [سوره الأنعام(6): آيات 108 تا 110] [سوره الأنعام(6): آيات 111 تا 113] [سوره الأنعام(6): آيات 114 تا 115]
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جلد چهارم

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جلد پنجم

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مجلد ششم

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مجلد هفتم

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جلد هشتم

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تفسير عاملى


صفحه قبل

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 3

ولى با جمله‏ى حمد ميكنم در حال غفلت غلط است‏ رَبِّ الْعالَمِينَ‏ 1- فخر. اين عبارت بمنزله‏ى استدلال است بر ستايش خدا يعنى حمد ميكنم چون پروردگار است.

مالِكِ يَوْمِ الدِّينِ‏ 2 مجمع: عموم قاريها (ملك) بدون الف خوانده‏اند و عاصم و كسائى و خلف و يعقوب و حضرمى (مالك) با الف خوانده‏اند.

تفسير فى ظلال القرآن: يوم الدّين يعنى روز پاداش در آخرت و اعتقاد بيوم الدّين از عقايد كلّى ارزنده‏ى اسلام است كه چشم و دل آدمى را بجائى ديگر غير از تنگناى زمين وابسته ميدارد كه خود را محدود بنيازمنديهاى زندگى نميداند و برتر از آن ميشمارد كه نگران باشد و چشم بسود محدود زندگى بر روى زمين بدوزد إِيَّاكَ نَعْبُدُ - فخر رازى. آغاز بكلمه‏ى‏ (إِيَّاكَ) يعنى تو را اشاره باين است كه چون خود را برابر دوست ديد و او را طرف گفتگوى خود قرار داد آماده ميشود براى بقيّه‏ى عبادتها و سختى عبادت بر او آسان ميشود و كلمه (نعبد) كه ميفهماند عبادتش با شركت ديگران است اشاره است بمفاد (الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ) يعنى مردم با ايمان همه برادر يكديگرند و در خداپرستى همه يك دل و يك جهت هستند.

إِيَّاكَ نَسْتَعِينُ‏ - روح البيان: كلمه‏ى‏ (إِيَّاكَ) مكرر شده است براى اشاره به اين كه پس از اظهار عبوديّت غرور و خودپرستى عبادت باين جمله جبران شود كه اگر بندگى است بكومك تو است باين معنى كه چون تو را ميپرستم غرورى ندارم و در اين هم از تو كومك ميخواهم.

فى ظلال: اينجا است حد فاصلى ميان آنكه خود را ز هر بندى آزاد بداند و آنكه خود را غلام بى‏اختيار پندارد. اينجا است كه مسلمان خود را از فشار طبيعت آسوده مى‏بيند چون توان خود و چيرگى طبيعت را دو پديده ز قدرت خداوند داند كه بيك روش و بكومك يكدگر بسوى يك هدف مى‏جنبند و آنچه در مغرب زمين بنام قهر طبيعت گفته ميشود ميراث نادانيهاى مردم رم قديم است كه ميفهماند اين طبيعت از قدرت خداوند جدا است ولى مسلمان پذيرفته است كه خداوند پديد آورنده‏ى او و ديگر قواى طبيعت است اين‏

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 4

است كه مسلمان از خدا يارى ميخواهد و از حوادث و قهر طبيعت باك ندارد.

اهْدِنَا الصِّراطَ الْمُسْتَقِيمَ‏ - مجمع: كلمه‏ى (صراط) با سين هم قرائت شده است و نيز با اشمام را بزا يعنى با راى شبيه بزا قرائت شده است صراط مستقيم را قرآن معنى كرده‏اند و دين و دوستى خانواده‏ى پيغمبر نيز معنى كرده‏اند.

كشف الاسرار جهودى بعلىّ عليه السّلام عرض كرد: اگر شما خود را بر حق ميدانيد چرا از خدا راه راست مى‏خواهيد؟ آن حضرت فرمود. گروهى پيش از ما سعادتمند شده‏اند و ما مى‏خواهيم همان سعادت نصيب ما شود.

امام فخر: چون خط مستقيم كوتاه‏تر فاصله است پس از خدا ميخواهيم ما را بنزديكتر راه سعادت رهبرى كند.

روح البيان: در تأويلات نجميّه است: هدايت عموم موجودات بموجب غريزه است بطرف نيازمنديهاى زندگى چنانكه در قرآن است‏ (أَعْطى‏ كُلَّ شَيْ‏ءٍ خَلْقَهُ ثُمَّ هَدى‏) يعنى پس از آفرينش موجودات براه زندگى رهبرى‏شان كرد. و هدايت ديگر طريقه‏ى مردمان خاصّه است و مؤمنين كه مفاد (يَهْدِيهِمْ رَبُّهُمْ بِإِيمانِهِمْ) شامل آنها است. سوّم هدايت راه مردمان اخصّ است كه پيغمبران باشند. همان‏طور كه در قرآن است‏ (وَ وَجَدَكَ ضَالًّا فَهَدى‏) .

تفسير صافى: از امام صادق ع روايت شده است: يعنى ما را ارشاد فرما بآن راه كه بدوستى تو كشاند و ببهشت جاويد رساند و جلوگير شود از توجّه بهوى و هوس كه موجب گمراهى است و هلاك.

در كشف الاسرار نوشته است: بار خدايا راه خود بنما و آنگه ما را در آن راه بروش دار وانگه از روش بكشش رسان و كشش را گفته‏اند (جذبة من الحقّ توازي عمل الثّقلين) يعنى از سوى حق آدمى را بآن جا ميبرند كه خوشى آن برابر است با عمل نيك جن و انس. شعر:

بسا پير مناجاتى كه از مركب فرو ماند

بسا يار خراباتى كه زين بر شير بر بندد

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 5

صِراطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ‏ - روح البيان: ابو العبّاس بن عطا گفت: مشمولين انعام چند دسته‏اند: 1- عارفين كه از نعمت معرفت برخوردار هستند 2- اوليا كه از يقين و صدق و رضا بهره‏مند هستند 3- نيكان كه نعمت بردبارى و مهربانى بآنها عنايت شده است 4- مريدان كه بحلاوت اطاعت بسر ميبرند 5- مؤمنين كه بنعمت استقامت در فكر و كار خود سعادتمند شده‏اند. مجمع: مشمولين انعام آنهائى هستند كه بقرآن فرموده‏ (الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ مِنَ النَّبِيِّينَ وَ الصِّدِّيقِينَ وَ الشُّهَداءِ وَ الصَّالِحِينَ) يعنى مشمولين انعام خدا پيغمبرانند و راستگويان و شهيدان راه حقّ و مردم درستكار.

غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَ لَا الضَّالِّينَ‏ - مجمع: حمزه (عليهم) با ضمّ‏ها خوانده است و بعضى (عليهمو) با واو خوانده‏اند. حسن بصرى (عليهمى) با يا خوانده است و اعرج با ضمّ‏ها و ميم خوانده است و هم با كسرها و ضمّ ميم (عليهم) قرائت كرده است و مقصود از (مغضوب عليهم) يهود هستند و (ضالّين) مسيحيها هستند.

كشف الاسرار: اين سوره را مفتاح الجنّة ناميده‏اند چون بهشت هشت در دارد و اين سوره مشتمل بر هشت قسمت است كه وسيله‏ى باز شدن آنها است: 1- ذكر ذات بوسيله‏ى‏ (الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعالَمِينَ) 2- ذكر صفات باين جمله‏ (الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ) 3- ذكر افعال‏ (إِيَّاكَ نَعْبُدُ) 4- ذكر معاد (ب إِيَّاكَ نَسْتَعِينُ) 5- ذكر تصفيه‏ى نفس بوسيله‏ى‏ (اهْدِنَا الصِّراطَ الْمُسْتَقِيمَ) 6- ذكر تجليه‏ى نفس بخيرات و نيكيها كه از نتيجه‏ى (صراط المستقيم) نصيب سالك ميشود 7- ياد احوال دوستان و رضاى حقّ از ايشان بجمله‏ (أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ) 8- اعراض از بيگانگان كه مفاد (غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ) است.

سخن ما 1: در نزول اين سوره كه گفته‏اند دو نوبت بوده است: بمكّه بوده است و مدينه ممكن است بگوئيم چون پيغمبر در مكّه بنماز آن را ميخوانده است و در مدينه بعنوان قرآن قرائت فرموده است از اين جهت گمان كرده‏اند كه دو نوبت‏

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 6

نازل شده است. مگر بگوئيم ستايش بر افاضه‏ى وجود است 2- كلمات‏ (رَبِّ الْعالَمِينَ‏ ... مالِكِ يَوْمِ الدِّينِ) اشاره است كه ستايش و پرستش مختصّ بآن است كه آغاز و انجام آفرينش باو است نه بآن كه خود فرض كنيم و بينديشيم 3- (الصِّراطَ الْمُسْتَقِيمَ) شايد اشاره باشد بزشتى عقايد ديگر اديان كه از پيچ و خمهاى فرض شريك و فرزند براى خدا و شفاعت بتها بيزاريم و مى‏خواهيم راه مستقيم توحيد را بما بنمايانى تا از چنين افكار زشت بر كنار باشيم و بيواسطه تو را بپرستيم چنانكه در آيت ديگر گفته شده است. (أَنَّ هذا صِراطِي مُسْتَقِيماً) و نيز مفاد اين شعر است:

بر آتش نشانند سجّاده‏ات‏

اگر جز بحقّ ميرود جاده‏ات‏

4- (الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ) شايد اشاره باشد بآنهائى كه عقل و فهم خود را بكار نمى‏برند و با تعصّب و تقليد حقّ را انكار كرده‏اند و در نتيجه مغضوب و گمراه شده‏اند 5- مفسّرين مثل مجمع و صافى روايت كرده‏اند كه مقصود از (الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ) يهود است كه در آيت ديگر گفته شده است‏ (مَنْ لَعَنَهُ اللَّهُ وَ غَضِبَ عَلَيْهِ وَ جَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَ الْخَنازِيرَ) و مقصود از (الضَّالِّينَ) مسيحيها هستند بدليل اين جمله‏ى قرآن‏ (لا تَتَّبِعُوا أَهْواءَ قَوْمٍ قَدْ ضَلُّوا مِنْ قَبْلُ وَ أَضَلُّوا كَثِيراً) ولى ممكن است بگوئيم: آنها كه مشمول انعام حقّ نيستند و در آيه گفته شده است: ما را براه آنها رهبرى مكن دو دسته‏اند: اوّل آن كه محروميتش بيشتر است و زشتر است، مردمى هستند كه اثر وجودى آنها منفى است و موجب ضلال و گمراهى مردم مى‏شوند. و جلوگير مردم ميشوند از وصول بغايت مطلوب كه در حقيقت معارض با خدا و آفرينش هستند از اين جهت توصيف شده‏اند به‏ (الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ) . دسته‏ى دوّم آنها هستند كه فقطّ خود گمراه هستند و زيانى بكسى ندارند البتّه آنها در درجه‏ى دوّم هستند و بعد از دسته‏ى اوّل منفور هستند 6- فقهاى شيعه باتّفاق واجب ميدانند در ركعت اوّل و دوم نماز سوره‏ى فاتحه خوانده شود چون روايت مشهور است (لا صلاة الّا بفاتحة الكتاب) يعنى آن نماز كه اين سوره در آن نباشد درست نيست البتّه با توجّه، نه‏

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 7

در فراموشى.

(سوره بقره)

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ‏

[سوره البقرة (2): آيات 1 تا 5]

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِ‏

الم (1) ذلِكَ الْكِتابُ لا رَيْبَ فِيهِ هُدىً لِلْمُتَّقِينَ (2) الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَ يُقِيمُونَ الصَّلاةَ وَ مِمَّا رَزَقْناهُمْ يُنْفِقُونَ (3) وَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِما أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَ ما أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ وَ بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ (4)

أُولئِكَ عَلى‏ هُدىً مِنْ رَبِّهِمْ وَ أُولئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ (5)

معنى لغات: رَيْبَ‏ - شكّ و ترديد، يُوقِنُونَ‏ - از مصدر يقين بمعنى استوار داشتن، الْمُفْلِحُونَ‏ - از مصدر فلاح بمعنى رستگارى جهت نزول: مجمع: مجاهد گفته است. چهار آيه از اوّل اين سوره براى توصيف مؤمنين نازل شده است و دو آيت بعد از آن براى كافرين است و از آن پس سيزده آيت براى منافقين.

ترجمه:/ 5- 1 بنام خداى بخشنده‏ى مهربان‏

1 [اى مردم خبردار باشيد]:

2 اين قرآن [كه پيمبر براى شما مى‏خواند] بى‏شك از سوى خدا است و راه هدايت براى آنها كه پرهيزكارند

3 همان مردم كه مؤمن بعالم غيب هستند [و آنچه ز چشم‏شان پوشيده است بيارى انديشه و خرد مى‏پذيرند] نماز مى‏خوانند و از آنچه نصيبشان كرديم بديگران بهره مى‏رسانند

4 و بقرآن كه بر تو نازل شد مؤمن هستند و بآنچه پيش از تو بر پيغمبران نازل شد و عالم آخرت و معاد را درست مى‏دانند.

اين گونه مردم ز سوى پروردگارشان براه حق هستند و رستگارند.

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 8

سخن مفسّرين: مجمع: اين سوره بمدينه نازل شده است. فقط اين آيه‏ (وَ اتَّقُوا يَوْماً تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ) در سفر حجّة الوداع بمنى نازل شد و آخر آيه است از قرآن كه بعد از آن آيتى نازل نشد و بدستور پيغمبر در آن فواصل آيات آخر اين سوره كه اكنون مى‏نويسند نوشته شده و آيه‏هاى اين سوره دويست و هشتاد و شش است و از على عليه السّلام نيز اين عدد نقل شده است.

كشف الاسرار: نقل كرده‏اند هر كه در زمان پيغمبر سوره‏ى بقره و آل عمران را ميدانست حبرش ميناميدند يعنى بسيار عالم و مردم او را محترم مى‏شمردند.

در يكى از جنگها پيغمبر يك جوان را فرمانده لشكر كرد مردم گفتند. اين جوانتر از نفرات لشكر است. فرمود او از ديگران عالم‏تر است كه سوره بقره ياد دارد.

اقتباس از فى ظلال: چون نظم آيات هر سوره را بدستور خود پيغمبر ميدانند. اين سوره كه آيات آن بمدينه پس از آيات مكّى و تا آخر عمر پيغمبر نازل شده است اين تنظيم آيات از آن رو است كه پيغمبر در اوّل ورود بمدينه با سه دسته‏ى مؤمن و كافر و منافق رو برو شده است بآغاز سوره سخن از اين سه دسته بميان آمده و از آن پس بمناسبت برگذارى روزگار و حوادث، آيات تنظيم شده است، چون نقل روش يهود با پيغمبران پيشين و سرگذشت آدم و شيطان و يا داستان جنك بدر و مانند اينها.

الم 1 روح البيان: در تاويلات نجميّه است: بقرآن براى قيام نماز گفته شده است: (قُومُوا لِلَّهِ)* و براى ركوع‏ (وَ ارْكَعُوا) و براى سجود (وَ اسْجُدُوا)* پس الف اشاره است بقيام در نماز و لام اشاره بركوع و ميم اشاره بسجود است.

تفسير منظوم صفى عليشان:

از الف كرد ابتدا وز لام و ميم‏

تا ز حادث راه يابى بر قديم‏

اين اشارت بر سه رتبه است از وجود

گر مراتب را شناسى با شهود

تفسير عاملى، ج‏1، ص: 9

اوّل اللّه است و ثانى جبرئيل‏

عقل فعّال او است از روى دليل‏

منتهى باشد محمّد در نمود

ز آن كه دارد جامعيّت در وجود

فيض هستى جبرئيل ذو العطا

ز ابتدا گيرد دهد بر منتهى‏

گفت جمع عالم اين است اى وجيه‏

يا عبادي فاعلموا لا ريب فيه‏

الم ذلِكَ الْكِتابُ‏ 2- فى ظلال: يعنى اين قرآن از همين حروف ا- ل- م درست شده است ولى بطورى كه معجزه است و ديگرى نمى‏تواند بمانندش بگويد چون كار خداوند در همه چيز به اين گونه است چنانكه آدمى در خاك آنچه تصرف كند بصورت مجسّمه درمى‏آورد ولى خداوند از خاك آدم ميسازد بهمين گونه آنچه آدمى در حروف تصرّف كند بصورت شعر يا خطا به در مى‏آورد ولى خداوند بصورت قرآن ميكند. پس فرق قرآن با سخن مردم همان فرق ايجاد انسان است با ساختن مجسمه و يا ديگر اشكال كه انسان مى‏سازد فِيهِ هُدىً لِلْمُتَّقِينَ‏ - 2 مجمع: ابن كثير خوانده است (فيهي هدى) كه در تلفّظ بهاى ضمير ياء افزوده است.

كشف الاسرار: عمر از كعب الاحبار پرسيد حقيقت تقوى چيست؟ گفت:

هرگز بزمين خاردار راه رفته‏اى كه دامن خود جمع كنى و بآهستگى از ميان خارها بيرون روى؟ اين است معنى تقوى. شعر:

خل الذّنوب صغيرها

و كبيرها فهو التّقى‏

و اصنع كماش فوق ار

ض الشّوك يحذر ما رأى‏

لا تحقرنّ صغيرة

انّ الجبال من الحصى‏

يعنى: از گناه كوچك و بزرگ خوددارى كن كه تقوى همين است و مانند كسى باش كه بر زمين خارستان ميرود و از هر چه مى‏بيند پرهيز ميكند گناه كوچك را سبك مشمار كه بتدريج بزرگ مى‏شود همان‏طور كه از سنگريزه كوه درست مى‏شود.

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